श्री हनुमान जी भगवान शिव का अवतार (रुद्रावतार) माने जाते हैं | परम राम भक्त हनुमान, जोकि पवनपुत्र हैं वह साहस और पराक्रम के प्रतीक हैं | श्री हनुमान को कई नामो से संबोधित किया जाता है – बजरंग बली, अंजनिपुत्र, पवनपुत्र, मारुती नंदन, केसरी नंदन आदि | इस वेबसाइट पर आपको हनुमान चालीसा हिंदी में और अन्य भाषाओँ में उपलब्ध कराई गयी हैं
हनुमान चालीसा एक हिंदू भक्ति भजन (स्तोत्र) है जो की भगवान हनुमान को संबोधित किया है जिसमे 40 चौपाई हनुमान जी को समर्पित की गई हैं । परंपरागत रूप से माना जाता है कि हनुमान चालीसा को कवि तुलसीदास द्वारा 16 वीं सदी में अवधी भाषा में लिखा गया था, और यह रामचरितमानस के साथ उनका दूसरा सबसे अच्छा ज्ञात लेख मन जाता है। शब्द “चालीसा” “चालीस”, जो हिंदी में नंबर चालीस का मतलब है, के रूप में हनुमान चालीसा 40 छंद (शुरुआत में और अंत में दोहे को छोड़कर) है से ली गई है। हनुमान चालीसा एक भक्ति भगवान हनुमान को समर्पित भजन है। हनुमान चालीसा को पढ़ने से ऊर्जा और एकाग्रता प्राप्त होती है क्योंकि हनुमान नाम ही अपार ऊर्जा और ध्यान का स्रोत है। हनुमान चालीसा एक सबसे मशहूर भजन है जो की पूरे विश्व भर में हिन्दुओ द्वारा पढ़ी जाती है |
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हनुमान जी के बारे में जानकारी
श्री हनुमान जी एक वानर थे, जो की प्रभु श्री राम के परम भक्त थे | कई लोक कथाओं में हनुमान जी की शक्तियों की प्रशंसा की गई है | हनुमान जी को उनकी शक्ति, साहस, ज्ञान, ब्रह्मचर्य, राम के लिए उनकी भक्ति के लिए जाना जाता था – हनुमान चालीसा में विस्तृत सस्वर पाठ या हनुमान चालीसा का जप एक आम धार्मिक प्रथा है। हनुमान जी भगवान शिव के अवतार थे और वे शक्ति, भक्ति, और दृढ़ता को दर्शाते हैं । हनुमान जी को भगवान श्री राम का परम भक्त माना जाता है। उनकी माता का नाम अंजनी का था यही कारण है कि उन्हें ‘अंजनी पुत्र’ नाम से भी जाना जाता था। उनको ‘चिरंजीवी’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है अमर । इसी तरह उनके कई अन्य नाम है, जैसे की मारुति व पवनपुत्र आदि | हनुमान जी को शक्ति का एक चेहरा माना जाता है और वह हमेशा कठिन समय में अपने भक्तों की रक्षा करते है।
हनुमान जी के बारे में कुछ अनसुनी जानकारी
श्री हनुमान जी श्रीराम के परम भक्त थे यह तो जग जाहिर है किन्तु हनुमान जी के जीवन के कुछ अनसुने पहलु कुछ इस प्रकार हैं:
- भगवान हनुमान केसरी और अंजना के पुत्र थे और उनका नाम पवनपुत्र इसलिए रखा गया क्योंकि पवन देव ने उनके जन्म में एक भूमिका निभाई थी |
- प्रभु श्री हनुमान को भगवान ब्रह्मा के द्वारा वरदान दिए गए थे जिसमे शामिल था अपना आकार कभी भी और कहीं भी बड़ा या छोटा करना, हथियारों का असर न होना, अमरता, हवा में उड़कर कही पर भी जा सकने की शक्ति|
- उन्होंने श्री राम को यह वचन दिया था की जब तक पृथ्वी पर श्री राम नाम जप जाएगा तब तक हनुमान पृथ्वी पर गुप्त तरीके से रहेंगे सबकी नज़रो से दूर |
- हनुमान जी ने एक बार सीता जी की दी हुई मोतियों की माला पहनने से मना कर दिया था, जब माता सीता ने उनसे इसकी वजह पूछी तब हनुमान जी ने कहा जी चीज़ में उनके प्रभु श्री राम का नाम न हो वह उनके किसी काम की नही, माता को अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए हनुमान जी ने अपना सीन चीयर के उन्हें दिखाया जिसमे श्री राम और सीता की छवि दिखी |
हनुमान चालीसा को पढ़ने की विधि
यह कहा जाता है कि अगर आप हनुमान चालीसा दैनिक पढ़ें तो आपके सभी दु: ख और दर्द हनुमान जी की कृपा से दूर हो जाएंगे। चालीसा को पढ़ने के लिए एक उचित विधि व समय होता है | ऐसा कहा जाता है की हनुमान चालीसा पढ़ने का सबसे उत्तम समय सुबह व रात को होता है | रात को सोने से पहले चालीसा को पढ़ कर सोने से इंसान में चमत्कारिक असर होता है | चालीसा को हमेशा नहाने के बाद ही पढ़ना चाहिए | जैसे ही आप इसे पढ़ना शुरू करेंगे आपको अपने अंदर ऊर्जा व सकरात्मक शक्ति महसूस होने लगेगी | यह कहा गया है कि भगवान हनुमान ने शनिदेव जी की मदद की थी उन्हें श्रीलंका से मुक्त करवाने में| इसलिए कहा जाता है अगर किसी पर शनि देव की कुदृष्टि हो तो उसको शनिवार को संध्या के समय 8 बार हनुमान चालीसा का जाप करना चाहिए |
हनुमान चालीसा को उचित ढंग से पढ़ी जानी चाहिए और पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए। यह कहा जाता है हनुमान चालीसा पढ़ने का उचित तरीका है कि हनुमान चालीसा के पूरा होने के बाद, ‘ओम’ का 108 बार पाठ किया जाना चाहिए है।
हनुमान चालीसा का पाठ हर कोई कर सके इसीलिए हमने इस वेबसाइट पर हनुमान चालीसा हिंदी में और अन्य भाषाओं में आप सभी के लिए समर्पित किया हैं
Hanuman Chalisa Lyrics in Hindi I हनुमान चालीसा हिंदी में
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गय अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप।।
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