कुरुक्षेत्र से क्या सीखा जा सकता है? 2025 में धर्म, नीति और युद्ध के सबक
महाभारत का कुरुक्षेत्र आज भी धर्म, नीति और जीवन के संघर्षों का आईना है। जानिए 2025 में इसकी शिक्षाएँ राजनीति, कार्यस्थल और निजी जीवन में कैसे लागू होती हैं।
प्रस्तावना – महाभारत के सबक
महाभारत केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक जीवन मार्गदर्शिका है। इसमें जो कुछ हुआ — वह प्रतीक है उन संघर्षों का, जिनसे हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी गुजरता है।
कुरुक्षेत्र का युद्ध सिर्फ हथियारों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि वह था धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष — एक ऐसा द्वंद्व जो आज भी हर कार्यस्थल, घर, समाज और राजनीति में किसी न किसी रूप में मौजूद है।
2025 में भी महाभारत की शिक्षाएँ उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी सदियों पहले थीं।
धर्म और अधर्म का भेद: क्या आज भी समझ पाना आसान है?
महाभारत हमें सिखाता है कि धर्म कोई स्थिर नियम नहीं, बल्कि परिस्थितियों पर आधारित निर्णय है।
आज के समय में जब नैतिकता और लाभ के बीच संघर्ष चलता है, तब कुरुक्षेत्र की सीख और भी ज़रूरी हो जाती है।
उदाहरण: – महाभारत के सबक
- युधिष्ठिर ने जुए में सब कुछ हार कर भी स्वयं को धर्मराज कहा — क्या यह धर्म था?
- अर्जुन ने अपने ही परिजनों से युद्ध करने से इनकार किया, पर श्रीकृष्ण ने उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित किया — क्या यह धर्म था?
इससे हमें यह समझ आता है कि धर्म वही है जो समय, स्थान और उद्देश्य के अनुसार सही हो।
राजनीति में महाभारत की नीति
- सत्य और रणनीति दोनों ज़रूरी हैं:
कृष्ण ने हमेशा सत्य की रक्षा के लिए चतुराई और रणनीति का सहारा लिया।
आज की राजनीति में भी नैतिकता और नीति का संतुलन बनाना ज़रूरी है। - लोभ और सत्ता की लालसा का परिणाम:
दुर्योधन और शकुनि की सत्ता की भूख ने पूरी वंश परंपरा को नष्ट कर दिया।
यह दिखाता है कि सत्ता बिना संतुलन के विनाश का कारण बन सकती है। - योग्यता बनाम जन्म:
कर्ण का संघर्ष आज के जातिवाद और अवसर की असमानता को दर्शाता है।
संदेश साफ है — योग्यता को सम्मान मिलना चाहिए, न कि केवल वंश को।Read more: द्रौपदी का असली स्वरूप: महाभारत की नारी शक्ति और नारीवाद की कहानी